Sunday 14 September 2014

हिंदी दिवस की शुभकामनाये



हिंदी ........जिसे जानते है हम सब बचपन से .... जो कभी अ से अनार बन कर ललचाती थी ..... तो कभी इमली की तरह जुबां खट्टी कर जाती थी ...कभी झूलती थी नाक पर ऐनक बनकर ........... तो कभी ओखली और औरत में घुमा जाती थी ..... कभी उडती थी मुक्त आकाश में कबूतर की तरह ...... तो कभी खरगोश बनकर दौड़ लगाती थी .....कभी करती थी टिक टिक घडी की तरह ....... तो कभी बनकर बापू का चरखा आजादी की जोत जला जाती थी ....... कभी बचाती थी तपिश से छाता बनकर .....तो कभी झंडा बनकर लहराती थी ...........
.........पर अब जैसे अनार सड़ गया है ....... इमली के पेड़ दीखते ही नहीं .... ऐनक बीते जमाने की बाते है कांटेक्ट लेंस का जमाना है ....... ओखली किसी काम की नहीं तो औरत लेडी बन गयी ............ आकाश जहरीला हो चूका है  ........ खरगोश दौड़ते है पिंजरों में ........ घडी रुकी हुयी है ....... बापू बस मजबूरी का नाम बनकर रह गये है ........ इंद्र तो वैसे ही रुष्ट रहते है ....... झंडे तो देश में करोड़ो लहरा रहे है ..... कोई मजहब के नाम पे ..... कोई स्थान के नाम पे .... कोई जाती के नाम पे .... ..

और इन सबके बीच डरी सहमी सी हिंदी भटकती है गली कुचो में ....... खेत खलिहानों में ......कभी लेती है छोटी सी सांस गलियों में गूंजते लोकगीतों में ........ कभी मुस्कुराती है बच्चे की तोतली जुबान में ....... कभी बच के निकलती है पग पग पर फैले जालों से ...... तो कभी करती है सामना अपनों (क्षेत्रीय भाषा ) के विरोध का जो सोचते है की हिंदी घोंट रही है उनका दम ........ कभी करती है कोशिश फिर से उड़ने की कुछ नादान सी कविताओ में .......तो कभी उलझ जाती है साहित्यकारों के बड़े बड़े उसूलो में......... कभी भागी फिरती है अपनी ही परछाई से ...... तो कभी सिकोड़ती जाती है खुद को सिमटते कम्बल के साथ ...... कभी सहम जाती है निर्भया सी जब फाडे जाते है उसके कपडे सरेआम ......... तो कभी तैरती है कुछ आँखों में हसीं सपने बनकर ... तो कभी झुंझलाती है भूखे पेट ............. पर हर पल हर लम्हा एक गुहार लगाती जाती है अपने बच्चो से की बचा ले उसका अस्तित्व ......... बचा ले उसकी आन बान शान .......... फिर से लौटा दे उसे उसका घर जो गिरवी रखा है विदेशियों के यहाँ ...... ना पहनाये उसे ऐसे आभूषण जो उसका दम घोंट रहे है ............ बस उसे दे दे उसकी पहचान ..... अपनों के बीच ..............    

तो आइये लेते है हम सब एक शपथ की देंगे उसे उसका सम्मान ..... हक़ से                   



कभी भागती थी मेरा बचपन बनकर 
आज रगों में दौड़ती जवानी है हिंदी

कभी राजा कभी विक्रम कभी वेताल 
वहीँ  परियों वाली कहानी है हिंदी

चारो और फैली इस तपिश में
एक लुभाती सी  छाँव सुहानी है हिंदी
 

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