Saturday 20 September 2014

बचपन

बचपन ........ जो जब पास  है तब पता नहीं चलता और बीतने के बाद मिल नहीं  पाता........... भले बचपन बीत जाता है पर सभी के अन्दर जिन्दा रहता है एक बच्चा .......... जो कभी सामने आ जाता है और कभी छुपा रहता है ....... डरा सहमा सा दुनिया की भीड़ से डरकर ............. उसी बचपन की कुछ यादें 

वो बचपन में दिनभर यूँ ही उधम मचाना
कभी चिड़ियाँ कभी तितली के पीछे दौड़ जाना

बीच राह में अक्सर यूँ ही मचल जाना
चलते चलते गिरना और गिरकर संभल जाना

देख टॉफी अचानक मोम सा पिंघल जाना
वो सर्दी गर्मी बरसात सभी का मखौल उड़ाना

ढर्रेदार दुनियां में थोड़ी बेतरतीबी फैलाना
कभी बात बेबात बगावत पर उतर आना

सुनकर परीकथाए सपनों में खो जाना
भूलके जहाँ को माँ की गोद में सो जाना

कभी राजा, मंत्री कभी चोर बन जाना
दुनिया में अपनी अलग सरकार चलाना

“विशाल” टूटे खिलोनो को बार बार चिपकाना
बचपन का मोल सब गुजर जाने के बाद जाना   

-विशाल सर्राफ धमोरा

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